Monday, September 10, 2018

प्रेस रिव्यू: बढ़ते चालू खाता घाटे से शेयर बाज़ार हुआ धड़ाम

ख़बर के मुताबिक़ भारत के बढ़ते चालू खाता घाटे ने शेयर बाज़ार की हालत पस्त कर दी है.
सेंसेक्स और निफ्टी ने छह महीने में पहली बार एक दिन में सबसे ज़्यादा की गिरावट दर्ज की है.
रुपये की क़ीमत डॉलर के मुक़ाबले 72.67 हो गई और ये नई रिकॉर्ड गिरावट है.
निवेशकों का मानना है कि चुनावी साल में रुपए और चालू खाता घाटे की ये हालत अर्थव्यवस्था के लिए और दिक्क़तें पैदा कर सकती है.
निफ्टी कल 151 अंक नीचे आ गया और सेंसेक्स में 467.65 अंक की गिरावट आई. मार्च महीने के बाद ये सबसे बड़ी गिरावट है. में दी गई ख़बर के अनुसार उत्तर प्रदेश सरकार गन्ने की बकाया राशि का निपटान करने के लिए 5,535 करोड़ रुपये की मदद का पैकेज देगी.
गन्ना विकास मंत्री सुरेश राणा ने सोमवार को कहा कि राज्य सरकार का लक्ष्य है कि अगले महीने में चीनी मिलों में पेराई शुरू होने से पहले किसानों को उनके गन्ने का पुराना 10, करोड़ रुपये का पूरा बकाया चुका दिया जाए.
उन्होंने कहा कि आने वाले हफ़्ते में सहकारी और निजी क्षेत्र की मिलों पर गन्ने की बकाया राशि का निपटान करने के लिए 5,535 करोड़ रुपये की मदद का पैकेज मंत्रिमंडल के समक्ष पेश किया जाएगा.
सुरेश राणा ने नेशनल फ़ेडरेशन ऑफ़ शुगर फ़ैक्टरीज़ लिमिटेड (एनएफएसएफएल) की वार्षिक आम बैठक के मौके पर ये बात कही.
उन्होंने बताया, "हमने 20 अक्टूबर से नए सत्र की शुरुआत से पहले बकाया राशि को शून्य करने का लक्ष्य रखा है."में दी गई ख़बर के अनुसार उत्तर प्रदेश सरकार गन्ने की बकाया राशि का निपटान करने के लिए 5,535 करोड़ रुपये की मदद का पैकेज देगी.
गन्ना विकास मंत्री सुरेश राणा ने सोमवार को कहा कि राज्य सरकार का लक्ष्य है कि अगले महीने में चीनी मिलों में पेराई शुरू होने से पहले किसानों को उनके गन्ने का पुराना 10,000 करोड़ रुपये का पूरा बकाया चुका दिया जाए.
उन्होंने कहा कि आने वाले हफ़्ते में सहकारी और निजी क्षेत्र की मिलों पर गन्ने की बकाया राशि का निपटान करने के लिए 5,535 करोड़ रुपये की मदद का पैकेज मंत्रिमंडल के समक्ष पेश किया जाएगा.
सुरेश राणा ने नेशनल फ़ेडरेशन ऑफ़ शुगर फ़ैक्टरीज़ लिमिटेड (एनएफएसएफएल) की वार्षिक आम बैठक के मौके पर ये बात कही.
उन्होंने बताया, "हमने 20 अक्टूबर से नए सत्र की शुरुआत से पहले बकाया राशि को शून्य करने का लक्ष्य रखा है."में दी गई ख़बर के मुता​बिक सोहराबुद्दीन शेख एनकाउंटर मामले में बॉम्बे हाई कोर्ट ने गुजरात के पूर्व एटीएस प्रमुख डीजी वंजारा समेत पांच लोगों को बरी कर दिया है.
हाई कोर्ट ने सोमवार को अभियुक्तों को आरोपमुक्त करने के निचली अदालत के फैसले को बरकरार रखते हुए इसे चुनौती देने वाली याचिका ख़ारिज कर दी.
गुजरात की एक निचली अदालत ने डीजी वंजारा समेत चार पुलिस अधिकारियों को आरोपमुक्त कर दिया था. तब सोहराबुद्दीन के भाई रुबाबुद्दीन ने इसके ख़िलाफ़ हाई कोर्ट में याचिका दायर की थी. की ख़बर के मुताबिक दिल्ली सरकार ने सोमवार को 'डोर स्टेप डिलीवरी' योजना की शुरुआत की.
इसके ​जरिए अब लोगों को 40 सेवाओं की घर बैठे सुविधा मिल सकेगी. सरकार का कहना है तीन महीने बाद इसके जरिए 100 तरह की सुविधाएं मिलने लगेंगी.
योजना की शुभारंभ करते हुए मुख्यमंत्री अ​रविंद केजरीवाल ने कहा कि अब पिज्जा की तरह सरकारी सुविधाओं की भी डिलिवरी होगी.
इन सेवाओं के लिए आवेदक सुबह आठ से रात दस बजे तक 1076 नंबर पर फ़ोन कर सकते हैं. आवेदक की सुविधा के अनुसार मोबाइल सहायक मिलने के लिए समय तय करेगा. फिर वह घर आकर फॉर्म भरवाएगा और प्र​क्रिया पूरी होने के बाद 50 रूपये का शुल्क लेगा.
बाद में प्रमाणपत्र पोस्ट के जरिए आवेदक के पास पहुंचेगा.में पहले पन्ने पर पीएनबी घोटाले के मामले में मुख्य अभियुक्त नीरव मोदी से जुड़ी ख़बर दी गई है.
इस ख़बर के अनुसार इंटरपोल ने आभूषण व्यापारी नीरव मोदी की बहन और बेल्जियम की नागरिक पूर्वी मोदी के ख़िलाफ़ रेड कॉर्नर नोटिस जारी किया है.
अधिकारियों ने सोमवार को इसकी जानकारी दी. रेड कॉर्नर नोटिस में कहा गया है कि 'धनशोधन' के आरोपों में पूर्वी दीपक मोदी की तलाश की जा रही है.
प्रवर्तन निदेशालय ने कहा कि पूर्वी मोदी कई छद्म निवेश कंपनियों की मालिक भी हैं. यारह सितंबर 1893 को शिकागो में हुए विश्व धर्म संसद में विवेकानंद के भाषण की याद में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रमुख मोहन भागवत ने भी शिकागो में ही आठ सितंबर को एक भाषण दिया है.
11 सितंबर की जगह आठ सितंबर क्योंकि सप्ताहांत न हो तो काम छोड़कर अमरीका में भाषण सुनने लोग नहीं आते, और विश्व धर्म संसद की जगह विश्व हिंदू सम्मेलन का आयोजन किया गया. आप मोहन भागवत के अंग्रेज़ी में दिए गए 41 मिनट का भाषण सुनेंगे तो आपको समझ में आएगा कि उन्होंने विवेकानंद से कोई प्रेरणा नहीं ली है.
पूरे भाषण के दौरान अमरीकी झंडा बैकग्राउंड में था, वहां न तो कोई भगवा ध्वज था, न ही तिरंगा.
बहरहाल, उन्होंने कई बातें कहीं जिन पर ग़ौर किया जाना चाहिए क्योंकि वो मामूली व्यक्ति नहीं हैं, संसार के सबसे बड़े एनजीओ के प्रमुख हैं जिसे भारत की मौजूदा सरकार अपनी प्रगति रिपोर्ट पेश करती है क्योंकि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ भाजपा की 'मातृसंस्था' है.
मोहन भागवत ने कहा कि भारत में हमेशा से समस्त संसार का ज्ञान रहा है, भारत के आम लोग भी इन बातों को समझते हैं. इसके बाद उन्होंने एक दिलचस्प सवाल पूछा, "फिर क्या ग़लत हो गया, हम हज़ार साल से मुसीबत क्यों झेल रहे हैं?" इसका जवाब उन्होंने दिया कि ऐसा इसलिए हुआ कि 'हमने अपने आध्यात्मिक ज्ञान के मुताबिक जीना छोड़ दिया.'
ग़ौर करिए कि उन्होंने हज़ार साल की मुसीबत क्यों कहा? संघ का मानना है कि भारत के दुर्दिन अंग्रेज़ी राज से नहीं बल्कि मुसलमानों के हमलों से शुरू हुए, मुग़ल काल को भी वे मुसीबत का दौर मानते हैं.
दरअसल, ऐसे मौक़े याद नहीं आते जब संघ ने अंग्रेज़ी हुकूमत की आलोचना की हो, न अतीत में, न वर्तमान में. आलोचना के मामले में मुग़ल उनके प्रिय रहे हैं.
इसके बाद उन्होंने एक और दिलचस्प बात कही, "आज की तारीख़ में हिंदू समाज दुनिया का ऐसा समाज है जिसमें हर क्षेत्र के मेधावी लोग सबसे अधिक संख्या में मौजूद हैं." न जाने उन्होंने यह निष्कर्ष किस आधार पर निकाला कि हिंदू, अपने हिंदू होने की वजह से यहूदियों, ईसाइयों या मुसलमानों से अधिक प्रतिभाशाली हैं?
यह हिंदू गौरव को जगाने की उनकी कोशिश थी, इसके फ़ौरन बाद उन्होंने कहा कि हिंदू एकजुट होकर काम नहीं करते, यही उनकी सबसे बड़ी समस्या है. उन्होंने एक किस्सा सुनाया कि एकजुट होने के आह्वान पर हिंदू कहते रहे हैं कि "शेर कभी झुंड में नहीं चलते."
उन्होंने कहा, "जंगल का राजा, रॉयल बंगाल टाइगर भी अगर अकेला हो तो जंगली कुत्ते उसे घेरकर, हमला करके मार दे सकते हैं." उनके ऐसा कहते ही हॉल तालियों से गूंज उठा, उन्हें कहने-बताने की ज़रूरत नहीं पड़ी कि वे जंगली कुत्ते किसको कह रहे हैं. ये वही कुत्ते हैं जिनके पिल्ले गाड़ी के नीचे आ जाएं तो प्रधानमंत्री मोदी जी को दुख होता है.
"हिंदू होने पर गर्व करना चाहिए", "हिंदू ख़तरे में हैं" और "हिंदुओं को एकजुट होना चाहिए"... ये सब संघ का स्थायी भाव है. हिंदुओं को किससे ख़तरा है? हिंदुओं को किस लक्ष्य के लिए एकजुट होना चाहिए, किसके ख़िलाफ़ एकजुट होना चाहिए, इन सवालों के जवाब इशारों में समझाए जाते हैं, चुनाव जैसी विकट स्थितियों में ही मंच से क़ब्रिस्तान-श्मशान कहना पड़ता है.

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