Thursday, October 4, 2018

रोहिग्या शरणार्थियों को वापस भेजने पर रोक से सुप्रीम कोर्ट ने किया इनकार

सरकार की तरफ से पेश हुए सीनियर कानूनी अधिकारी तुषार मेहता ने कोर्ट से बताया कि म्यांमार सरकार ने इस बात को माना है कि वे उनके नागरिक हैं और उनको पहचान के लिए सार्टिफिकेट दिए हैं ताकि उनकी वापसी हो सके।
प्रधान न्यायाधीश रंजन गोगोई, न्यायमूर्ति एस के कौल तथा न्यायमूर्ति के एम जोसेफ की पीठ ने यह आदेश दिया। 
गौरतलब है कि न्यायालय में बुधवार को एक याचिका दाखिल कर केंद्र को असम के सिलचर में हिरासत केंद्र में बंद सात रोहिंग्याओं को म्यामां भेजने से रोकने का अनुरोध किया गया था। गृह मंत्रालय के एक अधिकारी ने बुधवार को कहा था कि रोहिंग्या प्रवासियों को गुरुवार को मणिपुर में मोरे सीमा चौकी पर म्यामां अधिकारियों को सौंपा जाएगा। 
सात रोहिंग्याओं के प्रस्तावित निर्वासन को रोकने के लिए तत्काल कदम उठाने के अनुरोध वाली यह अंतरिम याचिका पहले से ही लंबित जनहित याचिका में दाखिल की गई।
दो रोहिंग्या प्रवासी मोहम्मद सलीमुल्लाह और मोहम्मद शाकिर ने पहले जनहित याचिका दायर की थी। उन्होंने रोहिंग्या समुदाय के खिलाफ बड़े पैमाने पर भेदभाव और हिंसा के कारण म्यामां से भागकर भारत आने वाले 40,000 शरणार्थियों को उनके देश भेजने के केंद्र के फैसले को चुनौती दी थी।
असम के हिरासत शिविर में करीब 32 रोहिंग्या शरणार्थी है। इनमें से नाबालिग समेत करीब 15 रोंहिग्या शरणार्थी तेजपुर में हैं। ऐसा माना जा रहा है कि इनमें से ज्यादातर म्यांमार के रखाइन राज्य के हैं जिन्हें साल 2014 में रेलवे पुलिस ने पकड़ा था।
भारत में करीब 40 हजार रोहिंग्या
पिछले कई वर्षों से हजारों की संख्या में म्यांमार के पश्चिमी तटवर्ती इलाके रखाइन में रहनेवाले रोहिंग्या मुसलमान पुलिस और कट्टरपंथी रोहिंग्या के बीच छिड़ी खूनी लड़ाई के चलते वहां से भागने के मजबूर हुए। ज्यादातर ये रोहिंग्या शरणार्थी बांग्लादेश गए लेकिन उनमें कुछ सीमा पार कर भारत आ गए। भारतीय सुरक्षा प्रतिष्ठान ऐसा मानते हैं कि भारत में ऐसे शरणार्थियों की संख्या करीब 40 हजार है।
सुप्रीम कोर्ट ने महज कुछ घंटों बाद मणिपुर से रोहिंग्या शरणार्थियों को वापस म्यांमार भेजे पर रोक लगाने से गुरुवार को साफ इनकार कर दिया। भारत की तरफ से आधिकारिक तौर पर म्यांमार प्रत्यर्पण का यह पहला मामला है।
वकील प्रशांत भूषण ने इस में सुप्रीम कोर्ट से दखल देने की मांग की थी और कहा था कि यह अदालत का कर्तव्य है कि वह राज्य विहीन रोहिंग्या शरणार्थियों की रक्षा करे।
इसके बाद सुप्रीम कोर्ट की पीठ ने प्रशांत भूषण से कहा कि उन्हें इस बात को याद दिलाने की कोई आवश्यता नहीं है कि जजों की क्या जिम्मेदारियां हैं। गृह मंत्रालय ने हलफनामा दायर कर कहा था कि सात रोहिंग्या अपनी सजा पूरी करने के बाद वापस म्यांमार जाने को तैयार हैं। अवैध प्रवासी थे और उन्हें फॉरनर्स एक्ट में दोषी पाया गया था।

No comments:

Post a Comment